namami shamishan

namami shamishan lyrics hindi

Namami Shamishan Lyrics Hindi

श्री शिव रूद्राष्टकम(namami shamishan)

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

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Shiv Aarti

Shiv Chalisa

Namami Shamishan Nirvan Roopam Meaning In Hindi

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥

हे मोक्ष स्वरुप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेद स्वरुप, ईशान दिशा के ईश्वर तथा सब के स्वामी श्री शिव जी, मैं  आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित ), गुणों से रहित, भेदरहित, इच्छारहित, चेतन आकाश एवं आकाश को ही वस्त्र के रूप में धारण करने वाले दिगंबर [ अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले ] आपको मैं भजता हूँ ।।

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनो गुणों से अतीत ), वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करते हूँ ।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिरपर सुन्दर गंगा नदी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चन्द्रमा और गले में सर्प  सुशोभित है ।।

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं; जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ, और दयालु हैं; सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और मुण्ड माला पहने हुए हैं; उन, सबके प्यारे और सबके नाथ [ कल्याण करने वाले ] श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ।।

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥

प्रचंड (रुद्ररूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के सामान प्रकाश वाल, तीनों प्रकार के शूलों ( दुःखों ) का निर्मूलन ( निवारण ) करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, भाव ( प्रेम ) के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी (माँ पार्वती ) के पति श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ।।

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत ( प्रलय ) करने वाल, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुर के सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथने वाले कामदेव के शत्रु हे प्रभो, प्रसन्न होईये, प्रसन्न होईये।।

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

जब तक पार्वती  के पति आपके चरण कमलों को मनुष्य नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक और न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और न ही उनके तापों का नाश होता है। अतः हे समस्त जीवों के अंदर ( ह्रदय में ) निवास करने वाले प्रभो ! प्रसन्न होइए।।

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

मैं  न तो योग जानता हूँ, न ही जप और न पूजा ही। हे शम्भो मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमस्कार करता हूँ। हे प्रभो ! बुढ़ापा और जन्म ( मृत्यु ) के दुःख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा कीजिये। हे ईश्वर ! हे शम्भो ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।।

 

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

भगवान रूद्र की स्तुति का यह अष्टक उन शंकर जी की तुष्टि ( प्रसन्नता ) के लिए ब्राह्मण द्वारा कहा गया। जो मनुष्य इसे भक्ति पूर्वक पढ़ते है, उन पर भगवान् शम्भू प्रसन्न होते हैं।।

 

Q. Who wrote rudrashtakam (namami shamishan)?

A. Goswami Tulsidas(This Is Inherited From Ram Charit manas) .